मैं तो एक परिंदा हूँ

खुले गगन मे उड़ने वाला ,
                                 मैं तो एक परिंदा हूँ

नही चाह है मेरी कोई ,
                              कोई नही मेरा नाता,
मुझे मेरे सपनो से हटकर,
                              ना कुछ आता , ना कुछ भाता,
नही धरा पे चलने वाला,
                              ना आसमान का बंदा हूँ,

खुले गगन मे उड़ने वाला ,
                               मैं तो एक परिंदा हूँ,...............................

नही मेरा कोई चेहरा ,
                                ना दुख़ का मुख पर कोई सेहरा
नई सोच नॅव आकांक्षाओ पर,
                              नही काल का कोई पहरा,
डर नही मुझे कोई मिट जाने का,
                                 मरकर भी मैं जिंदा हूँ,
तर हिय मे रहने वाला ,
                              मैं ऐसा एक बसिन्दा हूँ

खुले गगन मे उड़ने वाला ,
                                मैं तो एक परिंदा हूँ.....................................

बीते पल (Moments in time)

बीते पल

अजब जीवन की शैली थी,
अजब अपना सलीका था,
                            तरंग खुशियौ की ऐसी थी,
                             गॅमो का साज़ फीका था,
तुला सम था खुशी गम का-२,
                             ऐसा अपना तरीका था,
अजब .......

मिला कुदरत से था जीवन,
लहरता ओद था तन-मन,
                         वो बचपन की शरारत से,
                         भरा ख़ुशियो से था आँगन,

यूँ  चलना फिर मचल जाना,
यूँ गिरकर फिर ठहर जाना,
                           छिपा कुछ ना था उस मॅन मे,
                           मुकुर सा था वो बालापन.
अजब......

गुज़रते वक्त राहों के ,
पड़े यादों मे थे .सिमटे,
                           ठहरता पल जो इस दिल मे,
                           उसे हम बाँध कर रखते ,
ना भुला याद आता यूँ,
ना भूले से यूँ हम जाते,
                             तरा यादों का सागर था,
                            कहाँ था रोकना बस मे.
अजब.........................

Andaman Nicobar Trip

The Andaman and Nicobar Islands are a conglomeration of islands and Union Territory of India. It was awesome exeperience to visit andman island.

Cellular jail, It is the lament history of india (We call it Kalapani).
















A Stone Wants to Talk

* इक पत्थर आवाज़ दे रहा


इक पत्थर आवाज़ दे रहा ,
         मुझे नही रहना इस जग मे
सजो सको तो खुद को सॅंजो लो,
          मैं तो बसता हूँ रॅग-रॅग मे
इक पत्थर ...........................


जहाँ पड़ा रहना था मुझको ,
             आज खड़ा इंसान वही है
तुलता रहा जहाँ पे मैं तो,
             बिकता अब इंसान वही है
जोड़ रहा अरि पत्थर-पत्थर ,
            टूट रहा खुद अपने मद मे
इक पत्थर ..........


कभी टटोलो अपने मन को ,
                 मैं कठोर ना तेरे मन से,
भूल गया तू जॅन समाज को,
                 लूट रहा , लूटता लोभीपान से
पत्थर की  सीमाएँ बुनता ,
              खुद बँटता तू पत्थर बनके,
दोषित कुपित बना तू जॅग मे,
             मत मुझको दोषित कर तन के.
इक पत्थर ....................
 
                 ***

बढ़ा सको अगर कदम

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बढ़ा सको अगर कदम , ना छोड़ना उस राह को,
जिसमे विलिप्त भावना कि त्याग दूं बिकार को,

साकार जन्म हो तेरा निहित कर्म मे बढ़े चलो,
पुनीत जोड़ नीति से जन्म दो नये आकार को !

बढ़ा सको ..................................

हर रास्ते आसान है, कठिनाइया सामान है,
सुकीर्ति भाव ले चले जगह-जगह अपमान है,
ना डरना हीन भाव से ना प्रीति के अभाव से,
कदम बढ़ा निकल चले वही तो वर्धमान है,

सॅंजो के धीर भावना निकल दो विकार को,
संभाल लो अगर कदम, स्वप्न भी तेरे साकार हो,

बढ़ा सको ..................................

लड़कर सभी कठिनाइयों से, छोड़कर बुराइयों को,
उठ खड़ा निर्भीक हो, सिंचित करे माँ भारती ,
बदल के अपने आप को, बदल दो अब समाज को,
प्रथस्त होंगे राह सब, देव भी  तेरे हों सारथी,

यदि विश्वास होगा आपमे , बहेगा ये समाज मे,
कदम मिला प्रखर रहे, संसार तेरे साथ हो,

बढ़ा सको .................................

साहित्य से संदेश सारे देश को मिलता रहे

साहित्य से संदेश सारे देश को मिलता रहे
देश उन्नति के शिखर पर नव डगर बढ़ता रहे
देश के साहित्य कारो आप यदि जगते रहे
भारती की आरती कर नॅव प्रभा करते रहे
साहित्य से संदेश..............

कोई ना भष्ट्रचार की राहे पकड़ आगे बढ़े
होकर प्रताड़ित कामिनी  कोई ना सूली पर चढ़े
मातृ भू पर भावनाए सद विचारो की गढ़े
लालित्या मय साहित्य पर यूँ कालिमा को ना मढ़े
नव सृजन की राह पर नित लेखनी चलती रहे
साहित्या से संदेश............

हर शहीदो के विचारो को नई आवाज़ दो
जो हो बहकते राह से उनको पुनः आगाज़ दो
राष्ट्रहित मे हर स्वरो को तुम नया इक साज़ दो
मेदिनी की हरितमा को लेखनी से बारि दो
कुलकंप होकर के युवा अठखेलिया करता रहे
साहित्या से संदेश........

बढ़ रहे अरी पुंज को अर्ज़बन संघार दो
विषधरो पर बन शिखण्डी काल को उपहार दो
मार्तंड बन सौदामिनी से यामिनी को काट दो 
नीर से व्याकुल मकर को सुरसरि की धार दो
प्रग्यजन कांतर मे मधुप बन फिरते रहे
हर निलय कौमुदी का अतुल वैभव गान हो
मातृ भू के गीत पर जय वाहिनी सी शान हो
सुरभोग छलके ब्योम से मंदाकिनी जलपान हो
हो नंदनी और नंद पुलकित कोविद जनो का मान हो
तरुन्य के हर गात पर मृगराज बॅल भरते रहे
साहित्या से संदेश........

गीत कोई गा सकूँ ना भावना इतनी रहे 
टूटते सारे स्वरो को एक नया अलाव दो
दीन हीनो को उठाओ निर्बलो का साथ दो
बे सॅहारो के सिरो पर प्यार से पुछकार दो 
आवाज़ बन पतवार सी अपनी सदा चलती रहे
साहित्या से संदेश........

साहित्य सेवा का व्रती हू याचना मेरी यही
भावनाए श्रवण की साहित्य पर यू ना बही
हृदय से होकर प्रवाहित लेखनी तक आ गई
हो कृपा यदि विद जनो की तो निरत लिखते रहे
साहित्या से संदेश सारे.........

कुछ कर्म करो ऐसा जीवन मे


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जन्म हुआ मानव तन मे
कुछ कर्म करो ऐसा जीवन मे,

हुंकार उठे धरती अंबर,
कैसा सपूत मेरे आँगन मे,

अपनी काया से जगती मे ,
मानव जाति का नाम करो,
उद्गम विचारो से हर मन मे,
सुलभ भाव निर्माण करो,
ताकि बैठ अकेले डेरे मे,
अपने जीवन पर अभिमान करो,


कुछ कर्म करो ऐसा जीवन मे,
जन्म हुआ तेरा मानव तन मे
हुंकार उठे धरती अंबर,
कैसा सपूत मेरे आँगन मे,


पतझड़ से पर्वत तक बस,
हर एक नज़ारा तेरा हो,
संघर्षो की गलियों पर भी,
हर एक किनारा तेरा हो,
उम्मीदो की डोरी पर भी
सिर्फ़ एक सहारा तेरा हो,

कुछ कर्म करो ऐसा जीवन मे,
नाम  रहे तेरा हर मन मे
हुंकार उठे धरती अंबर,
कैसा सपूत मेरे आँगन मे,


तेरे तप से धरती तप कर,
पूजी जाए चंदन बनकर,
तेरी गाथा सभी बखान करे,
धरती से लेकर अंबर तक,
सुनकर धरती भी लहर उठें,
अंबर तुझ पर अभिमान करे,
भगवान भी धरती पर आएँ,
तेरे तप के चंदन का लेपन कर,


कुछ कर्म करो ऐसा जीवन मे,
जन्म हुआ तेरा मानव तन मे
हुंकार उठे धरती अंबर,
कैसा सपूत मेरे आँगन मे,

     ***
यूँ उड़ने की कश्मकश में ,
ना रश्ते यूँ बदल अपने
गगन में फिरते पखेरू क
बहुत है मापने वाले






मिटा दो चल के हर रश्ते,
बदल लो जितने, हो रंग अपने ,
हर कदम पे बनते शाये जो,
उन्हे हम भाँपने वाले !

Don't SYNTHETIC with the Poet


यूँ उड़ने की कश्मकश में ,

ना रश्ते यूँ बदल अपने

 

गगन फिरते पखेरू को,

 बहुत है मापने वाले

 

मिटा दो चल के हर रश्ते, 

बदल जितने, हो रंग अपने ,

 

हर कदम पे बनते शाये जो, 

 उन्हे हम भाँपने वाले !

MahaLaxmi Temple & Hazi Ali Dargah

Today i  visited Haji Ali Dargah with my friends.

Till the afternoon nobody ready to go there,actually  high sun was the main cause.
but suddenly i have decided to see it . finally we reached to Mumbai Central Station after taking the khachkhach local.

we done the lot of  fun with the friend's , some of us are  so funny so we enjoyed the moments and journey. .

Ekta ki sikhar ko chhoo sake armaan ham sab ke
banaya ek tha tune magar kya kar diya hamne
khata ye maaf kar dena takassum ho gai hamse.
banake roop lakho bhi ibadat ki teri hamne.
banake  roop   lakho bhi   ibadat ki teri   hamne


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