अजब जीवन की शैली थी,
अजब अपना सलीका था,
तरंग खुशियौ की ऐसी थी,
गॅमो का साज़ फीका था,
तुला सम था खुशी गम का-२,
ऐसा अपना तरीका था,
अजब .......
मिला कुदरत से था जीवन,
लहरता ओद था तन-मन,
वो बचपन की शरारत से,
भरा ख़ुशियो से था आँगन,
यूँ चलना फिर मचल जाना,
यूँ गिरकर फिर ठहर जाना,
छिपा कुछ ना था उस मॅन मे,
मुकुर सा था वो बालापन.
अजब......
गुज़रते वक्त राहों के ,
पड़े यादों मे थे .सिमटे,
ठहरता पल जो इस दिल मे,
उसे हम बाँध कर रखते ,
ना भुला याद आता यूँ,
ना भूले से यूँ हम जाते,
तरा यादों का सागर था,
कहाँ था रोकना बस मे.
अजब.........................
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