यूँ उड़ने की कश्मकश में ,
ना रश्ते यूँ बदल अपने
गगन में फिरते पखेरू क
बहुत है मापने वाले






मिटा दो चल के हर रश्ते,
बदल लो जितने, हो रंग अपने ,
हर कदम पे बनते शाये जो,
उन्हे हम भाँपने वाले !