साहित्य से संदेश सारे देश को मिलता रहे

साहित्य से संदेश सारे देश को मिलता रहे
देश उन्नति के शिखर पर नव डगर बढ़ता रहे
देश के साहित्य कारो आप यदि जगते रहे
भारती की आरती कर नॅव प्रभा करते रहे
साहित्य से संदेश..............

कोई ना भष्ट्रचार की राहे पकड़ आगे बढ़े
होकर प्रताड़ित कामिनी  कोई ना सूली पर चढ़े
मातृ भू पर भावनाए सद विचारो की गढ़े
लालित्या मय साहित्य पर यूँ कालिमा को ना मढ़े
नव सृजन की राह पर नित लेखनी चलती रहे
साहित्या से संदेश............

हर शहीदो के विचारो को नई आवाज़ दो
जो हो बहकते राह से उनको पुनः आगाज़ दो
राष्ट्रहित मे हर स्वरो को तुम नया इक साज़ दो
मेदिनी की हरितमा को लेखनी से बारि दो
कुलकंप होकर के युवा अठखेलिया करता रहे
साहित्या से संदेश........

बढ़ रहे अरी पुंज को अर्ज़बन संघार दो
विषधरो पर बन शिखण्डी काल को उपहार दो
मार्तंड बन सौदामिनी से यामिनी को काट दो 
नीर से व्याकुल मकर को सुरसरि की धार दो
प्रग्यजन कांतर मे मधुप बन फिरते रहे
हर निलय कौमुदी का अतुल वैभव गान हो
मातृ भू के गीत पर जय वाहिनी सी शान हो
सुरभोग छलके ब्योम से मंदाकिनी जलपान हो
हो नंदनी और नंद पुलकित कोविद जनो का मान हो
तरुन्य के हर गात पर मृगराज बॅल भरते रहे
साहित्या से संदेश........

गीत कोई गा सकूँ ना भावना इतनी रहे 
टूटते सारे स्वरो को एक नया अलाव दो
दीन हीनो को उठाओ निर्बलो का साथ दो
बे सॅहारो के सिरो पर प्यार से पुछकार दो 
आवाज़ बन पतवार सी अपनी सदा चलती रहे
साहित्या से संदेश........

साहित्य सेवा का व्रती हू याचना मेरी यही
भावनाए श्रवण की साहित्य पर यू ना बही
हृदय से होकर प्रवाहित लेखनी तक आ गई
हो कृपा यदि विद जनो की तो निरत लिखते रहे
साहित्या से संदेश सारे.........