A Stone Wants to Talk

* इक पत्थर आवाज़ दे रहा


इक पत्थर आवाज़ दे रहा ,
         मुझे नही रहना इस जग मे
सजो सको तो खुद को सॅंजो लो,
          मैं तो बसता हूँ रॅग-रॅग मे
इक पत्थर ...........................


जहाँ पड़ा रहना था मुझको ,
             आज खड़ा इंसान वही है
तुलता रहा जहाँ पे मैं तो,
             बिकता अब इंसान वही है
जोड़ रहा अरि पत्थर-पत्थर ,
            टूट रहा खुद अपने मद मे
इक पत्थर ..........


कभी टटोलो अपने मन को ,
                 मैं कठोर ना तेरे मन से,
भूल गया तू जॅन समाज को,
                 लूट रहा , लूटता लोभीपान से
पत्थर की  सीमाएँ बुनता ,
              खुद बँटता तू पत्थर बनके,
दोषित कुपित बना तू जॅग मे,
             मत मुझको दोषित कर तन के.
इक पत्थर ....................
 
                 ***

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