Don't SYNTHETIC with the Poet


यूँ उड़ने की कश्मकश में ,

ना रश्ते यूँ बदल अपने

 

गगन फिरते पखेरू को,

 बहुत है मापने वाले

 

मिटा दो चल के हर रश्ते, 

बदल जितने, हो रंग अपने ,

 

हर कदम पे बनते शाये जो, 

 उन्हे हम भाँपने वाले !